आज अगर विश्व फोटोग्राफी डे है - तो क्या, है तो होगा .....

आज विश्व फोटोग्राफी डे है भी हमें कुछ ख़ास करना नहीं है, हमें तो बस तस्वीरें खींच खींच कर अपने मोबाइल का दम घोंटना है ….जो कि हम तो वैसे ही हर दिन करते ही हैं, इस में क्या ख़ास बात हुई….कोई भी दिन वे लोग मनाएं जो किसी बात को, किसी रिश्ते को, किसी घटना को बिसार चुके हैं….इसलिए हमारे लिए तो हर दिन फोटोग्राफी डे है, वैसे तो हर घंटा…और शायद पल-पल भी …बस, हाथ में मोबाइल चाहिए….



हां तो आंखों देखी में कुछ तस्वीरें दिखाते हैं आप को …यह जो तस्वीर आप देख रहे हैं यह दो तीन दिन पहले की है …महालक्ष्मी फेमस स्टूडियो के सामने वाली बिज़ी सड़क पर ….आप बताइए इस स्कूटर पर कितने जीव यात्रा कर रहे हैं, हां, हां, उतने ही बता दीजिए जितने आप इस तस्वीर में  देख पा रहे हैं..अपना जवाब तैयार रखिए…बाद में जवाब बताता हूं ….


वैसे यह तस्वीर जो है …मुझे या किसी को भी देखने में अजीब सी लगेगी, ख़तरनाक तस्वीर, अचानक इस तरह के स्टंट देख कर मेरे मुंह से बर्बस निकलने ही लगता है ….और कईं बार निकल भी जाता है …खतरों के खिलाड़ी। दूसरी बात यह है कि जब भी इस तरह की तस्वीरें देखते हैं तो ऐसे लगता है जैसे इस तरह से मुंबई की भीड़ भरी सड़कों पर निकले कुछ लोग किसी स्कूटर के ब्रांड अम्बेसेडर हैं कि कैसे भी आल्टो या छोटी कारों को फेल करना है ….क्योंकि देखने वाले सोच लेते हैं कि अगर इतने लोग आसानी से एक टू-व्हीलर पर मज़े से अपनी मंज़िल की तरफ़ जा रहे हैं तो हम क्यों छोटी कार लेकर घर में एक हाथी पाल लें….


जब किसी को यह स्टंट करते देखते हैं तो अजीब लगता है, डर भी लगता है, जोखिम भरा काम लगता है …लेकिन जब हम लोग खुद करते हैं तो ऐसा कुछ लगता नहीं…..मैं आप को बता रहा हूं कि ऐसा स्टंट हम लोग भी कईं बरसों तक फिरोज़पुर की सड़कों पर करते रहे हैं….पीछे या तो मां बैठती या बीवी …और बीवी की गोद में छोटा बेटा और हमारे बीच में बड़ा बेटा दबा हुआ ….जब छोटा बेटा आगे बढ़ा और वह गोद में उठाने जैसा न रहा तो हमारे दोनों के बीच की जगह का आवंटन उस के नाम हो गया….बड़ा बेटा हमारे 1990 में 17500रुपए में खरीदे हुए एलएमएल पर मेरे आगे जैसे तैसे बैठने का जुगाड़ करने लगा …जल्द ही वह जुगाड़ भी न लग पाता …क्योंकि वह पंजाबियों की हेल्दी परिभाषा के अनुरूप हो गया ….फिर वह आगे खडा़ होने लगा …पीछे की दो सवारियां तो उस की और मेरी परेशानियों से बेखबर सफर का आनंद लेती रहतीं….कईं बार दस किलोमीटर इसी तरह लदे हुए हमारा एलएमएल हम लोगों को भारत-पाक हुसैनीवाला बार्डर तक सकुशल पहुंचा देता ….वहां पर भारत मां के वीर सपूतों भगत सिहं, सुखदेव और राजगुरू की समाधि भी है …और एक खंडहर रेलवे स्टेशन भी है जिसे भारत पाक युद्ध के वक्त नुकसान पहुंचा था …


खैर, परमात्मा की अपार कृपा से जैसे जैसे बड़ा बेटा कद निकालने लगा तो वह मेरी सीट के आगे खड़ा खड़ा मेरी आंखों के आगे आने लगा …मैं उसे बार बार कहता कि यार, थोडा नीचे हो जा…..और वह कैसे भी हैडल पर  जैसे तैसे टेक लगा कर नीचे हो जाता ताकि बापू का व्यू क्लियर रहे …..


लेकिन यह व्यवस्था भी ज़्यादा न चल सकी….दरअसल फिरोज़पुर छावनी के रामू के समोसे-जलेबी ने और भगत जी की शुद्ध बर्फी ने हमें जल्द ही ज़रूरत से ज़्यादा हेल्दी कर दिया …बस फिर क्या था, सभी हेल्दी, एक से बढ़ कर एक, और इस सब के चलते, बेटे के लिए स्कूटर में आगे खड़े होने की जगह लगातार कम होने लगी …मुझे भी नहीं पता कैसे वह बेचारा किस तरह से गुच्मछ-गुच्छा हो कर, अपने शऱीर को टेढा़-मेढा कर के फिट तो हो जाता ….लेकिन थक जाता अकसर ….मैं खुद भी थक जाता …क्योंकि हैंडल को काबू रखना मेरे लिए भी मुश्किल होने लगा था …..खैर, जल्दी ही इस समस्या का हल निकल आया ….बेटा जो अब तक छठी सातवीं कक्षा में आ गया था…..वह परेशान हो जाता स्कूटर पर सवारी करने के नाम ही से ….मुझे नहीं लगता कि उसे शर्म आती होगी इस तरह से लदने में ….क्योंकि वह शुरू से बड़ा बिंदास है …ईश्वर उसी रक्षा करे….और वैसे भी फिरोज़पुर जैसी जगह में शर्माना भी तो किस से …..वहां तो वैसे ही आप ख़ुद को अपने आसपास के परिवेश के लिए एक रोल मॉडल ही समझते की गलतफहमी पाल लेते हैं….


खैर, इस तरह से शहर में सवारी करने का जुगाड़ ज़्यादा दिन चला नहीं …क्योंकि पहले तो बडे़ बेटे की बातों से बगावत की बास सी आने लगी …..लेकिन जल्द ही वह पूरी तरह से बगावत पर उतर आया …..जब वह यह कहने लगा ….ठेठ पंजाबी में (जिसे सुन कर मेरी तो हंसी रुकने का नाम न लेती थी….)....तुसीं लोकीं हो आओ जित्थे जाना ए, माईं मेरे कोलों नहीं बैठ्या जांदा, तुहाडी ईस गड्डी ते …..( आप लोग हो आओ जहां जाना है, मेरे से आप की इस गाड़ी पर नहीं बैठा जाता….)....


और एक बार जब उसने इस यातना से स्वतंत्रता संग्राम घोषित किया तो फिर वह कभी बैठा नहीं ….बैठा क्या, खड़ा नहीं हुआ, फिट नहीं हुआ…गुच्छमगुच्छा हो के ….) …


उस के बाद हम ने थोडे़ समय के लिए कहीं जाने के लिए दो स्कूटर इस्तेमाल करने शुुरु कर दिए….एक श्रीमती जी चलातीं ..क्या था वह ….जिसे किक नहीं लगती थी, नाम नहीं याद आ रहा …एक्टिवा तो नहीं था…खैर, उस की वजह से हमारी सवारियां दो जगह बंट गई …..मां भी पंजाबी परिभाषा के अनुसार अच्छी हेल्दी थी, वह मेरे पीछे बैठने लगीं और छोटा बेटे को मेरे स्कूटर के आगे वाली जगह अलॉट हो गई….


लेकिन यह दो स्कूटरों वाली व्यवस्था कुछ अजीब सी लगती, सैर सपाटा तो कम और सिरदर्दी ज़्यादा होने लगी हम लोग आगे पीछे हो जाते तो एक दूसरे का स्कूटर न दिखने की चिंता करने लगते कि क्या हुआ …अभी तक दिख क्यों नहीं रहे ….


बस, इस सिरदर्द के लिए सेरीडोन बन कर आई 2005 में आसान किश्तों पर खरीदी ऑल्टो ….हम दोनों में से किसी को भी गाडी़ चलानी आती न थी लेकिन मोगा के एक शो रूम से हम लोग गाड़ी खरीद कर ले आए…उस के बाद सीखने सिखाने की प्रोसैस शुरू हुई …….वह भी एक बड़ी दिलचस्प कहानी है ……बाद में कभी सुनाएंगे….


आज तो उस स्कूटर पर लदे पूरे परिवार को देख कर हमें अपना वक्त याद आ गया …..वैसे आपने जवाब तो तैयार रखा होगा कि कितने लोग उस पर सवार हैं……कितने ….?.....चार….गलत जवाब …मुझे पता था आप सही जवाब नहीं देंगे….क्योंकि मैंने दूसरी फोटो उस पांचवे नाटू को दिखाती हुई तो आप को दिखाई ही न थी, तो अभी देख लीजिए…



Comments

  1. फोटोग्राफी डे पर बहुत सुंदर ब्लॉग साथ में गुच्छमगुच्छा फोटो स्कूटर पर बैठे सभी बहुत प्यारे लग रहे है।



    ReplyDelete

Post a Comment

अगर आप इसे पढ़ने के बाद अपनी कीमती राय लिखेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा...

Popular posts from this blog

हर तस्वीर एक दास्तां कहती है....