हर तस्वीर एक दास्तां कहती है....
हमारी ज़िंदगी में तस्वीरों की क्या अहमियत है यह ब्लॉग है उस के बारे में ….एक तरह के तस्वीरों में बिखरी पड़ी यादों और अहसास को समेटने की एक कोशिश है ….दो चार दिन पहले ही एक ख़्याल आया कि मैं इतनी ज़्यादा स्ट्रीट फोटोग्राफी करता हूं …लेकिन अगर उन में कुछ लोगों तक न पहुंचाई तो मोबाइल में दबी पड़ी हज़ारों तस्वीरों का क्या फ़ायदा….
एक बहुत मशहूर कहावत है कि हर तस्वीर 1000 शब्दों के बराबर है ….मैं इतनी तस्वीरें ले चुका हूं, उन्हें निहार कर समझने की कोशिश कर चुका हूं कि मुझे लगता है कि यह कहावत बिल्कुल सही है ….बल्कि इस से भी आगे की बात कहें तो वह यह है कि हर तस्वीर एक कहानी, किस्सा, दास्तां ब्यां कर रही होती है ….ज़रूरत है तो बस थोड़ा वक्त निकाल कर उन में गुम हो जाने की ….वैसे तो जिस निगाह से हम उसे देखते हैं, हमें उस में छुपी इबारत भी वैसी ही नज़र आती है…बेशक…
इस ब्लॉग के ज़रिए यह नाचीज़ यही काम करने की कोशिश करेगा….एक एक तस्वीर में जो स्टोरी है, जैसी मैंने पढ़ी, उसे आप तक पहुंचाने का प्रयास रहेगा।
मुझे स्ट्रीट फोटोग्राफी की लत लग चुकी है….इस का अब कोई इलाज नहीं है, न ही मैं चाहता हूं….सिलसिला ऐसे ही चलता रहे, दुआ करिए।
अभी मैं अपने फोन में चेक कर रहा था तो देखता हूं कि इस फोन में 26486 फोटो हैं, 517 व्हीडियो हैं, 985 शेल्फी हैं, 919 लाइव फोटो हैं, 93 पोट्रेट, 140 पैनोरामा, 1898 स्क्रीनशॉट हैं …और भी कुछ हैं, लेकिन मैं तो लिखने में ही बोर हो गया …..
अच्छा, जब गूगल फोटो एप खोलता हूं तो हर बार एक मैसेज आता है कि इस फोन में से 5000 आइटम डिलीट होने वाली हैं….लेेकिन कभी की नहीं…
वैसे यह मैसेज इसलिए आता है क्योंकि अधिकतर तस्वीरें एवं वीडियो वगैरह गूगल फोटो पर सहेजे हुए हैं…मेरे ख्याल में कम से कम इतनी ही तस्वीरें - एक अनुमान है- मेरी किसी न किसी पोर्टेबल हार्ड ड्राइव में कैद हैं…..कैद ही कह सकता हूं क्योंकि जिन को कभी खोल कर देखने की कोशिश ही नहीं की ….वह कैद ही तो हुईं ..जैसे काले पानी की सज़ा काट रही हों….
जितनी बेकद्री हम लोग इन दिनों तस्वीरों की कर रहे हैं, शायद ही पहले कभी देखी हो….हज़ारों तस्वीरें हैं हमारे पास लेकिन कभी उन को देखना तो दूर ढूंढने तक की फुर्सत नहीं है, इतनी ज़्यादा तस्वीरों ने एक तरह से हमें जीना भुला दिया है ….कहीं भी चले जाएं, हम सब लोग उस लम्हे को जीने की बजाए उसे अपने फोन में ठूंस लेना चाहते हैं….हर शख्स दूसरे के बारे में ऐसा ही सोचता है, लेकिन करता वह भी वही है…..सब से बड़ी मिसाल मैं ही हूं….
जैसा कि मैंने लिखा कि हर तस्वीर अपने आप में एक किस्सा है ….व्यक्तिगत तस्वीरों का तो मैं इतना दीवाना कभी न था, न ही हूं…लेकिन स्ट्रीट फोटोग्राफी मुझे उकसाती है बार बार उन लम्हों को फोन के हवाले करने के लिए….रास्तों में खींची हर तस्वीर एक बयान है ….किसी की खुशी, गमी, लाचारी, बेबसी, शोषण, मजबूरी, ज़िंदादिली, भूख, पीडा़……मेरा शब्दकोष इतना ही है …लेकिन मैंने बहुत कम लिखा है ….मेरे पास जो हज़ारों तस्वीरें हैं वे सब कुछ न कुछ सुनाना चाहती हैं…कुछेक को तो मैं कभी कभी अपने ब्लॉग में टिका देता हूं ……लेकिन अनेकों ऐसी हैं जिन की दास्तां अभी कही नहीं गईं …अभी उन में दिखाई देने वाले और न दिखाई देने वाले किस्से बुनने बाकी हैं……बस, यह ब्लॉग उसी दिशा में एक प्रयास है ….पहले मैंने सोचा कि मैं तो रोज़ाना ही इतनी तस्वीरें लेता हूं, रोज़ उन में से कुछ ले कर उन के बारे में कहूं…फिर लगा, इतना भी क्यों मरा जा रहा हूं ….इतनी हड़बड़ाहट किस लिए, जो तस्वीरें मेरे दिल को छू गईं, उन के बारे में बात करूंगा ….ये सब तस्वीरें 99.9 प्रतिशत मोबाइल कैमरे से ही ली गई हैं….कभी कभी डिजीटल कैमरे से भी फोटो खींच लेता था…लेकिन उस के अपने प्लस और माइनस प्वाईंट हैं…..पिक्सल विक्सल का हिसाब कौन रखता फिरे स्ट्रीट फोटोग्राफी में, बस एक लम्हे को कैसे भी उस पल-छिन को सहेजने की कोशिश होती है ….और बहुत बार तो जेब से फोन निकालने के चक्कर में वह मंज़र गायब हो जाता है ….जिसे आप इतनी शिद्दत से समेट लेना चाहते थे….
एक बात यह भी है कि तस्वीरें वही बेहतरीन दिखती हैं जिन्हें बिना किसी तैयारी के खींच लिया जाता है …वरना फोटोशॉप के ज़माने में किसी को भी कहां से कहां पहुंचा देना एक आम सी बात है …लेकिन उन तस्वीरों में रुह नहीं होती ….ऐसा मेरा ख्याल है …आप का कुछ और हो सकता है …
जो तस्वीरें हैं, पड़ी रहती हैं ….कईं बार उन के पोस्टर बनवा लेता हूं ….सब कुछ मूड और वक्त पर मुनस्सर होता है ….ताज़ा ताज़ा तस्वीरें हों तो बहुत कुछ हो जाता है, लेकिन एक बार निरंतर बढ़ती तस्वीरों के बंडल में वे दब जाएं तो फिर उन को ढूंढना, कुछ लिखना…सब सिरदर्द लगता है ….
तस्वीरें यहां वहां सोशल मीडिया पर बिना किसी कैप्शन के दिखती हैं तो मुझे बहुत चिढ़ होती है ….हर तस्वीर के साथ एक कैप्शन होनी ज़रूरी है …वरना तस्वीरें ऐसा लगता है जैसे लावारिस पड़ी हों….
एक बात और ……..लिखना तो चाह रहा हूं ……लेकिन फिर कभी ….बस इतना लिख कर कि जर्मनी से डॉयचे वेले से एक्सपर्ट आए थे …मल्टीमीडिया और ऑन-लेखन पर वर्कशाप करने इग्नयू में …2009 के आस पास कभी ….उन से तस्वीरों के बारे मे क्या सीखा, यह फिर कभी बताऊंगा …(जैसे हमारे यहां आकाशवाणी है, जर्मनी में डॉयचे वेले उन की सरकारी ब्रॉडकास्टिंग सर्विस है…
आगे कुछ लिखने से पहले एक दो तस्वीरें लगाता हूं ….मैं एक गली में कुछ तस्वीरें खींच रहा था कुछ दिन पहले …सुबह का वक्त था ….इतने में एक मेरे से भी ज़्यादा बुज़ुर्ग आए और मुझे इंगलिश में कहने लगे कि कभी भी तस्वीर खींचो तो सामने से खींचो….जब बातचीत हुई तो कहने लगे कि 88 साल की उम्र है, चर्च से आ रहा हूं …साथ में उन्होंने जो झोला अपने कंधे पर लटकाया हुआ था, उस पर बढ़िया बढ़िया गीत ऊंची आवाज़ में बज रहे थे ….पेन-ड्र्राईव लगा कर सुनते हैं अपने मनपसंद गाने ….मैंने कहा कि आप बहुत ज़िंदादिल हैं….मैंने कहा था…लाइवली हैं…….कहने लगे की …What lively! We live only once!!....अच्छा लगा उन से मिल कर, वह पेशे से फोटोग्राफर रहे हैं, लेकिन अब उन्होंने दो लड़के रखे हुए हैं जो उन के लिए काम करते हैं….
मैं उन से मिली सीख का ख्याल रखूंगा …..अगर हम खुले दिमाग से किसी की बात सुनें तो हम हर जगह से सीखते रहते हैं….
ये वे तस्वीरें हैं जो मैं उस दिन खींच रहा था ….किसी गली में …फिर मैंने उन को बोला कि मेरी भी एक तस्वीर खींच दीजिेए….
सामने से फोटो खींचने से तस्वीर बढ़िया आती है…लेकिन स्ट्रीट फोटोग्राफी में बहुत बार यह मौका ही नहीं मिल पाता …क्योंकि अकसर आप को फोटो किसी को बताए बिना खींचनी होती है ….बताने से तो खामखां के बखेड़े खड़े हो जाते हैं …बताने से क्या, कईं बार तो फोटो खींचते हुए दिख जाने पर भी ………वैसे मुझे आज तक किसी ने टोका नहीं, रोका नहीं, शायद किसी को लगता ही न होगा कि यह बुढऊ जिससे अपने घुटने तो संभल नहीं रहे, फोन का कैमरा क्या ख़ाक संभालेगा….और इस के साथ ही आई-फोन के कैमरे की वजह से मेरा काम आसान हो जाता है ….पल-छिन से भी अगर कुछ कम होता होगा तो बस उतना ही वक्त लगता है क्लिक करने में ….कईं बार तो यह सब इतना क्षणिक होता है कि लगता ही नहीं कि फोटो आई भी होगी या नहीं…….और इसी चक्कर में कईं बार थोडी़ धुंधली भी रह जाती है …वैसे वह एक रिमाइंडर भी होता है कि बंदे, अपने कैमरे को कभी कभी पोंछ भी लिया कर ….उस वक्त सत्संग में सुनी बात भी याद आ जाती है …..
धूल चेहरे पर थी और हम आईना साफ़ करते रहे ….
एक बार शनिवार के दिन वरली नाका पर मैंने कुछ बच्चों को नींबू-मिर्ची बेचते देखा तो उन की फोटो खींच ली….उन में से किसी ने देख लिया मेरी इस हरकत को….दो तीन बच्चे मेरे पास आ गए …गाडी़ का शीशा खुला था …
“क्यों खींची हमारी फोटो ?”- एक बच्चे ने तपाक से पूछा….
मैं इस तरह के सवाल के लिए तैयार न था, मुझे तो लगा जैसे किसी ने मेरी चोरी पकड़ ली हो , अभी मैं कुछ कहता इस से पहले ही सिग्नल ग्रीन हो गया …लेकिन मैंने उसी वक्त वह फोटो डिलीट कर दी ….जो कि मैं उन के सामने ही करने वाला था ताकि उन का किसी को सवाल पूछने का हक मेरे फोटो खींचने के फितूर के चक्कर में कहीं चरमरा न जाए….
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अगर आप इसे पढ़ने के बाद अपनी कीमती राय लिखेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा...